बुधवार, 8 सितंबर 2010

वो बहुत ख़ूबसूरत है...




बहुत दिनों से मन में ढ़ेर सारी बातें उमड़-घुमड़ रही थी...कितनी सारी घटनाएं आंखों के सामने से होकर मन को उद्वेलित कर निकल गईं... सोचा उन्हें पिरो दूं शब्दों में...पर वही तकिया कलाम मैं भी अपनाकर शायद खुद से बचने की कोशिश की...'वक्त नहीं मिल पाया', काम बहुत था, घर में मेहमान आ गए...पर मैं ये भी जानती हूं कि आप दूसरों से अपनी व्यस्तता की कहानी कहकर काम से बच सकते हैं पर खुद को कहां से जवाब देंगे...पर आज मेरे बहानेबाज़ मन को बहाना बनाने के लिए कोई बहाना नहीं मिला और मैं उतर आई शब्दों की दुनियां में... हर दिन की तरह आज भी जब मैं घर से निकली तो सामने नीले आसमान पर कुदरत की बहुत ही सुंदर चित्रकारी देखकर मन खुश हो गया...पर वही रास्ते..वही भीड़ देखकर...सोच रही थी इतने सारे लोग रोज सफर कर कहां जाते हैं... लगता है जीवन को चलाना ही सबका उद्देश्य है और मुझे लगता है कि ज्यादातर लोगों को ये पता ही नहीं होता कि वे क्यों जिए जा रहें हैं...क्या उद्देश्य है जीवन का ...क्या पाना है और कहां जाना है..कितना कुछ पाना चाहता है हर इंसान शोहरत, पैसा, सुख-सुविधा और न जाने क्या-क्या ख्वाहिशें लेकर दिन की शुरुआत करता है...फिर दिन ढ़लते ही एक थकान भरी उदासी के साथ लौट आता है अपने आशियाने में...इतनी सारी ख्वाहिशों में लोग शायद उसे भूल जाते हैं जो उसके दामन में है... उस खुशी को महसूस करना छोड़ उसकी आस में भटकता रहता है जो या तो उसे मिल नहीं सकता या जो उसकी पहुंच में नहीं है...सड़क पर चलते हुए अक्सर मैनें लोगों को केवल भागते हुए देखा है.... किसी को भी रास्ते पर राहगीर की तरह नहीं देखा...जो रास्ते की खूबियों को कमियों को ..मौसम के रंग को ...हवाओं की छुअन को और आकाश में बादलों की बनती मिटती तस्वीर को पल भर देखकर खुश हुआ हो...पता नहीं जिस कुदरत की छांव में हम रहते हैं उसे देखने का एक पल का भी वक्त क्यों नहीं निकाल पाते...सोचती हूं खुश होने के लिए कितना कुछ है इस जहां में... किसी की मधुर आवाज में सुनाई देता एक प्यारा सा गीत... क्या दिन भर के लिए हमें ऊर्जा से नहीं भर सकता...बादलों में निकलता छुपता चांद क्या अपने आप मुस्कुराने पर विवश नहीं करता... क्या ठंडी हवा की छुअन जीवन के स्पंदन को बढ़ा नहीं देती....इतना कुछ है थोड़ा नजर तो उठाइए ..अपने अंदर महसूस तो करिए ये दुनियां, ये जीवन एक बार ही मिलता है....क्यूं इसे यूं ही बेखयाली में जिए जाते हैं ...

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