ओशो- विद्रोही आत्मा
ओशो का अलौकिक संसार
....ओशो को पढ़ते हुए,
सुनते हुए एक अरसा बीत गया पर आज भी जब भी सुनो लगता है ये शायद पहली बार सुना । उन्होंने
अपने जीवन में जितना कुछ कहा वो एक जीवन में सुन पाना मेरे लिए संभव भी नहीं। आज
जब ओशो के बारे में कुछ लिखने का मौका मिला तो सोच रही हूं क्या लिखूं, उन पर तो
हजारों लाखों किताबें लिखी जा चुकी है..और लिखी जा रही है, लाखों करोड़ों उनके शिष्यों
ने उनके वचनामृत की हर बूंद को सम्हाल कर रखा है जो लिखता है पुनरावृत्ति ही हो
जाती है इसलिए सोच रही हूं ऐसा क्या लिखूं जो नया हो, कोशिश करूंगी ओशों को कुछ
अपने अनुभव से लिखूं तो शायद नया हो ,नया शायद इसलिए कि ओशो से जुड़ी बातें किताबी
ना होकर अनुभव पर आधारित होंगी ..ओशो जबलपुर की ऐसी धरोहर हैं जिन्होंने
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जबलपुर को ना केवल पहचान दिलाई बल्कि कई देशो को जबलपुर
आने को विवश भी किया ,क्योंकि ओशो को चाहने वाले सन्यासियों की संख्या विदेशों में
करोड़ों मे है और वो उस जबलपुर, गाड़रवारा को देखना चाहते हैं जहां ओशो पढ़े-बड़े
हुए अपना बचपन और युवावस्था बिताई..इसलिए उनसे जुड़ी हर चीज खास बन गई । देवताल वो
स्थान है जब ये घना जंगल हुआ करता था तब ओशो यहां पहुंचा करते थे अपने ध्यान
,एकांत और साधना के लिए आज हम यहां पहुंचे हैं और यहां के सन्यासियों से, उनके
मित्रो से, उनकी बहन से उनके दोस्तों से उनके शिष्यों से बातचीत करके जानने की
कोशिश करेंगे कि ओशो क्या थे कैसा अनुभव रहा और वो क्या दे गए दुनिया को । ओशो के
संपर्क में जो थोड़ा भी आया वो बिना बांटे ,उनको अपने भीतर पचा नहीं पाया। आज ओशो
पर हिन्दी, इंग्लिश,इटालियन,जर्मन भाषाओं में लगभग 1 हजार पुस्तकें प्रकाशित हो
चुकी है,जो शिष्य नहीं उन्होंने भी लिखी और अपने प्रेम का इजहार किया। ओशो से जो
भी एक बार मिला वो उन्हें भुला पाया हो संभव ही नहीं। आखिर यही तो है प्रभावित
होना न..कुछ तो प्रभाव है ही ना जो ओशो के देह त्यागने के सालों बाद भी लोग उनके
प्रवचन पर किताबें लिख रहें हैं उनके बताए ध्यान की राह में चल रहे हैं..जीवन को
आध्यात्म के साथ सच्चाई में जी रहे हैं। सभी दिग्गजों ने ओशो को लेकर अपने अनुभव
शब्दों में व्यक्त किए । अमृता प्रीतम
ओशो एक अकेला नाम
है, सदियों में अकेला नाम जिसने दुनिया को भयमुक्त होने का संदेश दिया। कुछ लोग
हैं जो चिंतन,कला या विज्ञान के क्षेत्र में प्रतिभाशाली होते है और कभी-कभी ये
दुनिया उन्हें सम्मानित करती है । लेकिन ओशो अकेले हैं बिल्कुल अकेले,जिनके होने
से ये दुनिया सम्मानित हुई ये देश सम्मानित हुआ।
डॉ हरिवंशराय बच्चन
ओशो का कार्य कठिन
किन्तु परमावश्यक है। उनकी पुस्तकें कॉलेजों के पाठ्य-पुस्तकों में आनी चाहिए।
डॉ मनमोहन सिंह,
पूर्व प्रधानमंत्री
‘विश्वकल्याण के लिए ओशो का संदेश सर्वाधिक
प्रासंगिक है ।विश्व एक नए संतुलन की खोज में लगा है जो विज्ञान और आध्यात्म को
साथ साथ लेकर चले ,मानवता के लिए एक नया आत्मसम्मान ,गरिमा और संतोष का जीवन
व्यतीत करने की दिशा दिखायें। मनुष्यता जब अपने आपको प्रश्नों में घिरा पायेगी और
उत्तर की खोज करेगी तो उसके मन में ओशो का विचार सर्वोपरि होगा। ’
कुछ ऐसे ही अनुभवों से दो चार होता रहा मेरा पूरा दिन जबलपुर के देवताल ओशो आश्रम में ...
ज्योति सिंह