बुधवार, 26 मई 2010

मां होती है एक सी






















परिंदों की अठखेलियां
बंदनवार बनाता उनका कलरव
सिंदूरी शाम में लौटता झुंड
दिवसावसान में घर की तड़प
और घरौंदे में इंतजार करता कोई
जो मुझे ज़िंदगी से भर जाता है
एक मूक पंछी
जो मौन में रिश्तों को जीता है
मैने देखा है वो रिश्ता है 'मां'
दर्द की सिहरन में मरहम है मां,
जेठ की दुपहरी में घनी छांव है मां,
अस्तित्व की तलाश में पहचान है मां,
मुझसे अलग पर मेरी सांसे हैं मां,
बच्चों को नहीं उम्मीदों को जन्म देती हैंमां,
हर मज़हब हर धर्म में एक सी होती मां,
मां बन के मैनें जाना तुम क्या हो 'मां'
मैं खुशनसीब हूं बहुत अच्छी है मेरी 'मां'