रविवार, 15 दिसंबर 2019


ओशो- विद्रोही आत्मा


ओशो का अलौकिक संसार

....ओशो को पढ़ते हुए, सुनते हुए एक अरसा बीत गया पर आज भी जब भी सुनो लगता है ये शायद पहली बार सुना । उन्होंने अपने जीवन में जितना कुछ कहा वो एक जीवन में सुन पाना मेरे लिए संभव भी नहीं। आज जब ओशो के बारे में कुछ लिखने का मौका मिला तो सोच रही हूं क्या लिखूं, उन पर तो हजारों लाखों किताबें लिखी जा चुकी है..और लिखी जा रही है, लाखों करोड़ों उनके शिष्यों ने उनके वचनामृत की हर बूंद को सम्हाल कर रखा है जो लिखता है पुनरावृत्ति ही हो जाती है इसलिए सोच रही हूं ऐसा क्या लिखूं जो नया हो, कोशिश करूंगी ओशों को कुछ अपने अनुभव से लिखूं तो शायद नया हो ,नया शायद इसलिए कि ओशो से जुड़ी बातें किताबी ना होकर अनुभव पर आधारित होंगी ..ओशो जबलपुर की ऐसी धरोहर हैं जिन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जबलपुर को ना केवल पहचान दिलाई बल्कि कई देशो को जबलपुर आने को विवश भी किया ,क्योंकि ओशो को चाहने वाले सन्यासियों की संख्या विदेशों में करोड़ों मे है और वो उस जबलपुर, गाड़रवारा को देखना चाहते हैं जहां ओशो पढ़े-बड़े हुए अपना बचपन और युवावस्था बिताई..इसलिए उनसे जुड़ी हर चीज खास बन गई । देवताल वो स्थान है जब ये घना जंगल हुआ करता था तब ओशो यहां पहुंचा करते थे अपने ध्यान ,एकांत और साधना के लिए आज हम यहां पहुंचे हैं और यहां के सन्यासियों से, उनके मित्रो से, उनकी बहन से उनके दोस्तों से उनके शिष्यों से बातचीत करके जानने की कोशिश करेंगे कि ओशो क्या थे कैसा अनुभव रहा और वो क्या दे गए दुनिया को । ओशो के संपर्क में जो थोड़ा भी आया वो बिना बांटे ,उनको अपने भीतर पचा नहीं पाया। आज ओशो पर हिन्दी, इंग्लिश,इटालियन,जर्मन भाषाओं में लगभग 1 हजार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है,जो शिष्य नहीं उन्होंने भी लिखी और अपने प्रेम का इजहार किया। ओशो से जो भी एक बार मिला वो उन्हें भुला पाया हो संभव ही नहीं। आखिर यही तो है प्रभावित होना न..कुछ तो प्रभाव है ही ना जो ओशो के देह त्यागने के सालों बाद भी लोग उनके प्रवचन पर किताबें लिख रहें हैं उनके बताए ध्यान की राह में चल रहे हैं..जीवन को आध्यात्म के साथ सच्चाई में जी रहे हैं। सभी दिग्गजों ने ओशो को लेकर अपने अनुभव शब्दों में व्यक्त किए । अमृता प्रीतम
ओशो एक अकेला नाम है, सदियों में अकेला नाम जिसने दुनिया को भयमुक्त होने का संदेश दिया। कुछ लोग हैं जो चिंतन,कला या विज्ञान के क्षेत्र में प्रतिभाशाली होते है और कभी-कभी ये दुनिया उन्हें सम्मानित करती है । लेकिन ओशो अकेले हैं बिल्कुल अकेले,जिनके होने से ये दुनिया सम्मानित हुई ये देश सम्मानित हुआ।
डॉ हरिवंशराय बच्चन
ओशो का कार्य कठिन किन्तु परमावश्यक है। उनकी पुस्तकें कॉलेजों के पाठ्य-पुस्तकों में आनी चाहिए।
डॉ मनमोहन सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री
विश्वकल्याण के लिए ओशो का संदेश सर्वाधिक प्रासंगिक है ।विश्व एक नए संतुलन की खोज में लगा है जो विज्ञान और आध्यात्म को साथ साथ लेकर चले ,मानवता के लिए एक नया आत्मसम्मान ,गरिमा और संतोष का जीवन व्यतीत करने की दिशा दिखायें। मनुष्यता जब अपने आपको प्रश्नों में घिरा पायेगी और उत्तर की खोज करेगी तो उसके मन में ओशो का विचार सर्वोपरि होगा।

कुछ ऐसे ही अनुभवों से दो चार होता रहा मेरा पूरा दिन जबलपुर के देवताल  ओशो आश्रम में ...
ज्योति सिंह 


रविवार, 14 जुलाई 2019

मेरी नई शुरुआत

 मेरी नई शुरुआत   
शुरुआत जब भी करो नई ही होती है ...अब से ब्लॉग में मैं नई शुरुआत करने जा रही हूं ...उन महिलाओं से आपको रूबरू करवाने का जिन्होंने विपरीत परिस्थियों में ऐसा काम किया जिसनें उनके जीवन के साथ दूसरों के जीवन में भी सकारात्मक बदलाव किया ...इस कड़ी में आज मिलिए पद्मश्री डॉ जनक पलटा से जो बड़ी अद्भुत महिला हैं....प्रकृति और प्रकृतिपद्दत चीजों से खुद जी रही हैं और दूसरों को प्रेरित कर रही हैं..डॉ जनक ने सूरज की रोशनी को हर घर के चूल्हे तक पहुंचाने का काम किया..और ऐसे सोलर कुकर बना दिए जो मिसाल है..सौर ऊर्जा से गांव में रोशनी पहुंचा दी...और भी बहुत कुछ देखिए इस रिपोर्ट

पद्मश्री डॉ जनक पलटा मगिलिगन - सूरज की रोशनी से बनी पहचान

धरती की हर चीज मनुष्य को कुछ ना कुछ देती ही है और बदले में हमसे कुछ भी नहीं मांगती..और हम है कि लगातार प्रकृति का दोहन ही करते जा रहे हैं...अगर वक्त रहते हम ना जागे तो आने वाली पीढ़ी को देने के लिए हमारे पास कुछ भी नहीं बचेगा...इसी सोच को लेकर काम कर रहीं है पद्मश्री जनक पलटा। जिन्होंने सूरज की रोशनी को,पेड़-पौधों को,खेत-खलिहान को ना खुद अपने लिए बल्कि दूसरों के जीवन में रोशनी के लिए चुना है.. इस कार्य में उनके पति और परिवार के लोगों ने पूरा सहयोग दिया.
तरह-तरह के सोलर कूकर...दूर गांव तक जाति सोलर लाइट जो गरीबों के गांव गली को रोशन कर रही है...और हजारों लोगों को सोलर कूकर बनाने का प्रशिक्षण भी दे चुकी हैं...इसके अलावा सोलर कूकर का निर्माण कर लोगों तक पहुंचाने का काम भी लगातार कर रहीं हैं..जनक के पति नार्दन आयरलैंड के थे पर भारत में रहकर यहां के गांव के लिए अहम कार्य किए और इस कार्य के लिए उनके देश की सरकार ने सम्मानित किया...पति की मृत्यु के बाद जनक इस काम को आगे बढ़ा रही हैं.. इस कार्य के लिए जनक को पद्मश्री जैसा सम्मान भी हासिल है आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जनक ने अपने पति के साथ मिलकर इस कार्य को किस हद तक समाज के लिए समर्पित किया होगा कि घर का कोना-कोना सम्मान से भरा पड़ा है.....डॉ जनक एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता है वो इंदौर जिले के सनावदिया गांव में स्थित जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट की संस्थापिका और निर्देशिका हैं जो गैर सरकारी संगठन है..जनक ग्रामीण महिलाओं के बारली विकास संस्थान की पूर्व निदेशक भी हैं..महिला सशक्तिकरण करना उनके जीवन का लक्ष्य है....इस कार्य के लिए डॉ जनक को कई राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी हासिल हो चुका है ...जनक कहतीं हैं कि प्रकृति ने जो कुछ भी हमें दिया है उसे अपने और अपनी पीढ़ी के लिए हमें सम्हालना होगा..प्रकृति के साथ हो रहे खिलवाड़ के लिए हम खुद जिम्मेदार हैं और उसके परिणाम के लिए भी ...तो सम्हलना भी हमे ही होगा..प्रकृति को सहेजने के लिए हम जनक को सलाम करते हैं

ज्योति सिंह 

 

शनिवार, 22 जून 2019

'like' से आपकी पहचान ?

रीति बड़ी खुश थी ,चहक रही थी ..पता है क्यों ? क्योंकि फेसबुक पर, इंस्टा में उसकी पोस्ट को हजारों लाइक मिले थे..उसकी इस हालत पर सौरभ जो उसी का दोस्त है कहने लगा अरे यार मेरे तो इतने दोस्त नहीं है मैं  तो कुछ भी लिखूं या पोस्ट करूं मेरी फोटों में तो इतने लाइक कभी नहीं  आते ना ही कमेंट...रीति थोड़ा गर्वित थी सोशलमीडिया में उसकी पहचान सौरभ से कहीं ज्यादा थी....खैर सौरभ मायूस होकर काम में लग गया। एक दिन अचानक सौरभ का एक्सीडेंट हो गया बाइक से उसने कोई फोन मिलाया बस उसके बाद उसे कुछ याद नहीं...जब होश आया तो देखा हास्पिटल में है...सिर में चोट आने से बेहोश हो गया था ..डॉक्टर कह रहे थे वक्त पर अगर आपके दोस्त हॉस्पिलट ना लाते तो शायद जान ना बचती ..आपके इतने दोस्त देखकर बड़ी खुशी हुई ....सब जान देने पर आमादा दिखे रा- दिन एक कर दिए...रीति भी आई मिलने पर मायूस सी..सौरभ ने पूछा क्या हुआ सब ठीक तो है..बोली मैं तो  खोखली दुनिया पर इतना घमंड कर इतराती रही और तुम इतने धनी होकर भी कभी जाहिर भी नहीं किया। रीति को कुछ याद आगया था जब वो बहुत बीमार थी ..उसके घर के लोग और सौरभ के सिवा कोई नहीं आया था....पर सौरभ के इर्द-गिर्द इतनी दोस्तों की भीड़ देखकर उसे अहसास हो गया था कि ..सोशल मीडिया में कोई कितना ही लाइक और कमेंट लेले..सही मायने में आपके अपने व्यवहार से बने दोस्त ही वक्त पर काम आते हैं फेसबुक तो केवल ही फेस ही बन कर रह जाता है ..दिल की किताब सच्चे रिश्तों के बिना अधूरी ही रह जाती है ।तो कोशिश कीजिए अपने आस-पास के लोगों से लाइक लीजिए ..वरना मुसीबत में फेसबुक ओपन करने का वक्त भी नहीं  मिलेगा और आप तन्हा ही रह जाएंगे...तो अगर किसी को फेसबुक पर लाइक ना मिले तो ये  ना समझे की उसका कोई वजूद नहीं.......ज्योति सिंह
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