सोमवार, 13 सितंबर 2010

अमर प्रेम


आप सोच रहें होगें ये तो फिल्म का नाम है तो मैंने अपने ब्लाग के शीर्षक में क्यूं ले लिया..यही तो लिखना है मुझे आज तो शीर्षक भी यहीहोगा...कल ये फिल्म टीवी पर आ रही थी तो  मैं देखने पर विवश हो गई...बहुत दिनों बाद बहुत अच्छी फिल्म आ रही थी ..फिल्मों का जन्म लोगों के मनोरंजन के लिए हुआ होगा तभी तो लोग बड़ी फुर्सत केसमय देखते हैं पर कुछ फिल्में शायद जीवन की बड़ी गहरी बातों को बड़ी आसानी से लोगों से कह जाती हैं और जीवन के सही मायने बता जाती हैं हां ये बात और है कि लोग कितनी गंभीरता से उसे लेते हैं या महज मनोरंजन कर भुला देते हैं...पर मुझे हमेशा से यही लगता रहा कि फिल्म जीवन का,समाज का आइना होती है उसमें हमें वही देखते हैं जैसे हम हैं इसीलिए तो हर कोई अपने हिसाब की कहें या अपने पसंद की फिल्में देखता है....अमरप्रेम एक ऐसी फिल्म जिसमें हर पात्र जीवन के आदर्श को जीता है...मन की गहराई से उठती संवेदना को जीता है...हर भाव अपने आप में मुक्कमिल...शायद वहां उससे बेहतर किरदार और कलाकार नहीं हो सकता था...प्रेम का परिष्कृत रूप जो अब विरले ही देखने को मिलता है...कौन भला आज के समय में अपने जीवन की खुशी केवल आदर्श निभाने के लिए किसी को देता है....कोइ बचपन में मिले किसी अजनबी के थोड़े से प्यार का कर्ज उतारने  एक अजनबी को अपनी मां का दर्जा देता है..यहां तो लोग अपनी मां को ही घर से बेघर कर देते हैं....किसी से किया वादा लोग जीवन भर तो दूर एक दिन भी नहीं निभाते ऐसे में ये फिल्म देखकर लगता है हम किसी कल्पना की दुनिया में पहुंच गये हैं...पर ऐसा नहीं है आज भी कुछ लोग हैं जो जीवन के आदर्शों के लिए दुख को गले लगाना पसंद करते हैं..ना कि खुशी को हर शर्त पर पाने को लालायित रहते हैं.. ये फिल्म शायद आज के परिप्रेक्ष्य में हमें अजीब लग रहीं हैं क्योंकि अब जीवन के मायने बदल गये हैं, लोगों की जीवन के प्रति सोच बदल गई है...पर आज भी सबको अपने लिए शायद ऐसी ही रिश्तों की गहराई पसंद है....

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