राजिम की यात्रा मैने कई बार की और इसकी स्मृतियां मेरे मानस पटल पर सदा के लिए अंकित है..स्कूल कॉलेज में पिकनिक के लिए गए तो राजिम की रौनक कुछ और थी...नौकरी करते वक्त अपने साथियों के साथ पिकनिक में नदियों की सुंदरता ने प्रेम से मन को मोहा..परिवार के साथ पूर्णिमा में राजिम भक्ति के रंग में रंग गया..सालों बाद कल जब राजिम कुंभ पर कार्यक्रम करने के लिए निकली तो राजिम में आस्था के साथ मनोरंजन के अलावा धर्म का राजनीतिकरण दिखा,लोगों की सुविधा के नाम पर भ्रष्टाचार की कलई खोलती परतें दिखीं..नदियों को बचाने के प्रयास के नाम पर नदियों को खत्म करने की बानगी दिखी, ये तो मेरे अपने अनुभव हैं जो साल दर साल बदलते गए...पर राजिम अपने आप में मेरे लिए सदा खास रहा प्रेममय रहा....पढ़ने वालों के लिए भी राजिम को जानना जरूरी है..महानदी,पैरी और सोंढूर नदी के संगम पर बसा है छत्तीसगढ़ का राजिम। पवित्र नदियों के संगम के कारण राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग भी कहा जाता है। यहां हर साल माघ पूर्णिमा से लेकर शिवरात्रि तक विशाल मेला लगता है। संगम के मध्य में कुलेश्वर महादेव का मंदिर स्थित है । कहा जाता है कि वनवास काल में श्रीराम ने अपने कुलदेवता महादेव जी की पूजा की थी। इस क्षेत्र को कमलक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है..मान्यता है कि भगवान विष्णु ने धरती पर कमल गिराया और कहा कि जहां ये गिरे वहां मेरा मंदिर का निर्माण कराया जाए..और पंखुड़ियों पर शिव के मंदिर स्थापित किए गए इसलिए राजिम से ही पंचकोशी यात्रा भी की जाती है.चकोशी यात्रा में श्रद्धालु पटेश्वर, फिंगेश्वर, ब्रम्हनेश्वर, कोपेश्वर तथा चम्पेश्वर नाथ के पैदल भ्रमण कर दर्शन करते है तथा धुनी रमाते है, १०१ कि॰मी॰ की होती है ये यात्रा। राजिम कुम्भ में विभिन्न जगहों से हजारो साधू-संतो का आगमन होता है, प्रतिवर्ष हजारो की संख्या में नागा साधू, संत आते है, और शाही स्नान तथा संत समागम में भाग लेते है, महाकुम्भ में विभिन्न राज्यों से लाखों की संख्या में लोग आते है,और भगवान श्री राजीव लोचन, तथा श्री कुलेश्वर नाथ महादेव जी के दर्शन करते है, और अपना जीवन धन्य मानते है ।
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