मंगलवार, 28 जनवरी 2020



मैकल की रानी चिल्फी


ये पहाड़ों के उतार चढ़ाव, ये घाटी के ढलान, घने जंगलों के ये सन्नाटे आपकों सहज ही रोमांच से भर देते हैं और एकपल को आपको रुककर देखने को मजबूर भी करते हैं....इन हरी भरी घाटियों को देखकर समझ आता है कि कवि की कल्पना क्यों इनके इर्द गिर्द घूमती है..क्यों सुंदर गीत इन पर लिखे जाते हैं...
ये है मैकल की रानी चिल्फी घाटी कवर्धा जिले का खूबसूरत हिल स्टेशन । वैसे तो यहां मौसम हर वक्त खुशनुमा होता है पर चिल्फी घाटी में जाड़े के दिनों मे कड़ाके की ठंड और जमी बर्फ ये ये सफेद रंग की चादर से ढंककर कुछ और ही खूबसूरत हो जाती है । चिरईयां के फूलपहाड़ों पर ऊंचे-ऊंचे पेंड़,बादलों का अ˜दभुत नजारा,बैगा आदिवासियों की ठेठ देसी जीवन आकर्षित करता है।   

सरोदा दादर एक सुंदरसुरम्य जगह है जो चिल्फी घाटी पर स्थित हैजहां से पहाड़ों की असली सुंदरतासूर्योदय और सूर्यास्त के दुर्लभ नजारे , दिन के बदलते मिज़ाज और बादलों के बदलते आकार का आनंद कोई भी आसानी से ले सकतें हैंट्रेकिंग और प्रकृति प्रेमियों के लिए यह पसंदीदा जगह है। पर्यटन के क्षेत्र को बढ़ावा देने राज्य सरकार की सहायता से जिला प्रशासन द्वारा पर्यटकों को सुविधा देने एवं उन्हें आकर्षित करने के लिए सर्वसुविधायुक्त रिसोर्टआकर्षक कुटीर एवं अन्य आश्रय स्थलों का निर्माण किया जा रहा है।
सरोदा जलाशय पर्यटकों के लिए महत्वपूर्ण स्थान रखता है शाम को नजारा देखते ही बनता है ये सनसेट प्वॉइंट के रूप में  विकसित हो चुका है इसका निर्माण 1963 में उतानी नाला को बांध कर किया गया ..शहर के शोरगुल से दूर अगर आप शांत वातावरण में रहना चाहते हैं तो एंकात को महसूस करने के लिए ये प्राकृतिक नजारे आपको अच्छा मौका देते हैं
यहां पर टूरिज्म की बड़ी संभावना है। सरोदा दादर और पीड़ाघाट में वॉच टॉवर बना है। भोरमदेव अभयारण्य के जामुनपानी और प्रतापगढ़ में जंगल सफारी कर वन्यप्राणियों को देख सकते हैं। यहां से कान्हा नेशनल पार्क भी घूमने जा सकते हैं। पहाड़ों पर ट्रैकिंग व कैंपिंग का मजा ले सकते हैं। इन सबमें सबसे खास यहां की आदिवासी संस्कृति हैजो विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
बैगा आदिवासी हमारे लिए सदा ही आकर्षण का केंद्र रहा है ..इनका जीने का अंदाज ..इनके रीति रिवाज ..पहनावा..खान पान सब कुछ हमे हैरत में डालता है..
कवर्धा रायपुर से 120 किलोमीटर है रायपुर हर जगह से ट्रेन से जुड़ा हुआ है  निकटम रेल्वे स्टेशन राजनांदगांव या डोंगरगढ़ है..अगर आप सड़क मार्ग से आना चाहे तो बस या कार से आ सकते है चिल्फी घाटी कवर्धा से 58 किलोमीटर दूर है रास्ते में सरोदा जलाशय का आनंद भी ले सकते हैं।



रविवार, 15 दिसंबर 2019


ओशो- विद्रोही आत्मा


ओशो का अलौकिक संसार

....ओशो को पढ़ते हुए, सुनते हुए एक अरसा बीत गया पर आज भी जब भी सुनो लगता है ये शायद पहली बार सुना । उन्होंने अपने जीवन में जितना कुछ कहा वो एक जीवन में सुन पाना मेरे लिए संभव भी नहीं। आज जब ओशो के बारे में कुछ लिखने का मौका मिला तो सोच रही हूं क्या लिखूं, उन पर तो हजारों लाखों किताबें लिखी जा चुकी है..और लिखी जा रही है, लाखों करोड़ों उनके शिष्यों ने उनके वचनामृत की हर बूंद को सम्हाल कर रखा है जो लिखता है पुनरावृत्ति ही हो जाती है इसलिए सोच रही हूं ऐसा क्या लिखूं जो नया हो, कोशिश करूंगी ओशों को कुछ अपने अनुभव से लिखूं तो शायद नया हो ,नया शायद इसलिए कि ओशो से जुड़ी बातें किताबी ना होकर अनुभव पर आधारित होंगी ..ओशो जबलपुर की ऐसी धरोहर हैं जिन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जबलपुर को ना केवल पहचान दिलाई बल्कि कई देशो को जबलपुर आने को विवश भी किया ,क्योंकि ओशो को चाहने वाले सन्यासियों की संख्या विदेशों में करोड़ों मे है और वो उस जबलपुर, गाड़रवारा को देखना चाहते हैं जहां ओशो पढ़े-बड़े हुए अपना बचपन और युवावस्था बिताई..इसलिए उनसे जुड़ी हर चीज खास बन गई । देवताल वो स्थान है जब ये घना जंगल हुआ करता था तब ओशो यहां पहुंचा करते थे अपने ध्यान ,एकांत और साधना के लिए आज हम यहां पहुंचे हैं और यहां के सन्यासियों से, उनके मित्रो से, उनकी बहन से उनके दोस्तों से उनके शिष्यों से बातचीत करके जानने की कोशिश करेंगे कि ओशो क्या थे कैसा अनुभव रहा और वो क्या दे गए दुनिया को । ओशो के संपर्क में जो थोड़ा भी आया वो बिना बांटे ,उनको अपने भीतर पचा नहीं पाया। आज ओशो पर हिन्दी, इंग्लिश,इटालियन,जर्मन भाषाओं में लगभग 1 हजार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है,जो शिष्य नहीं उन्होंने भी लिखी और अपने प्रेम का इजहार किया। ओशो से जो भी एक बार मिला वो उन्हें भुला पाया हो संभव ही नहीं। आखिर यही तो है प्रभावित होना न..कुछ तो प्रभाव है ही ना जो ओशो के देह त्यागने के सालों बाद भी लोग उनके प्रवचन पर किताबें लिख रहें हैं उनके बताए ध्यान की राह में चल रहे हैं..जीवन को आध्यात्म के साथ सच्चाई में जी रहे हैं। सभी दिग्गजों ने ओशो को लेकर अपने अनुभव शब्दों में व्यक्त किए । अमृता प्रीतम
ओशो एक अकेला नाम है, सदियों में अकेला नाम जिसने दुनिया को भयमुक्त होने का संदेश दिया। कुछ लोग हैं जो चिंतन,कला या विज्ञान के क्षेत्र में प्रतिभाशाली होते है और कभी-कभी ये दुनिया उन्हें सम्मानित करती है । लेकिन ओशो अकेले हैं बिल्कुल अकेले,जिनके होने से ये दुनिया सम्मानित हुई ये देश सम्मानित हुआ।
डॉ हरिवंशराय बच्चन
ओशो का कार्य कठिन किन्तु परमावश्यक है। उनकी पुस्तकें कॉलेजों के पाठ्य-पुस्तकों में आनी चाहिए।
डॉ मनमोहन सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री
विश्वकल्याण के लिए ओशो का संदेश सर्वाधिक प्रासंगिक है ।विश्व एक नए संतुलन की खोज में लगा है जो विज्ञान और आध्यात्म को साथ साथ लेकर चले ,मानवता के लिए एक नया आत्मसम्मान ,गरिमा और संतोष का जीवन व्यतीत करने की दिशा दिखायें। मनुष्यता जब अपने आपको प्रश्नों में घिरा पायेगी और उत्तर की खोज करेगी तो उसके मन में ओशो का विचार सर्वोपरि होगा।

कुछ ऐसे ही अनुभवों से दो चार होता रहा मेरा पूरा दिन जबलपुर के देवताल  ओशो आश्रम में ...
ज्योति सिंह 


रविवार, 14 जुलाई 2019

मेरी नई शुरुआत

 मेरी नई शुरुआत   
शुरुआत जब भी करो नई ही होती है ...अब से ब्लॉग में मैं नई शुरुआत करने जा रही हूं ...उन महिलाओं से आपको रूबरू करवाने का जिन्होंने विपरीत परिस्थियों में ऐसा काम किया जिसनें उनके जीवन के साथ दूसरों के जीवन में भी सकारात्मक बदलाव किया ...इस कड़ी में आज मिलिए पद्मश्री डॉ जनक पलटा से जो बड़ी अद्भुत महिला हैं....प्रकृति और प्रकृतिपद्दत चीजों से खुद जी रही हैं और दूसरों को प्रेरित कर रही हैं..डॉ जनक ने सूरज की रोशनी को हर घर के चूल्हे तक पहुंचाने का काम किया..और ऐसे सोलर कुकर बना दिए जो मिसाल है..सौर ऊर्जा से गांव में रोशनी पहुंचा दी...और भी बहुत कुछ देखिए इस रिपोर्ट

पद्मश्री डॉ जनक पलटा मगिलिगन - सूरज की रोशनी से बनी पहचान

धरती की हर चीज मनुष्य को कुछ ना कुछ देती ही है और बदले में हमसे कुछ भी नहीं मांगती..और हम है कि लगातार प्रकृति का दोहन ही करते जा रहे हैं...अगर वक्त रहते हम ना जागे तो आने वाली पीढ़ी को देने के लिए हमारे पास कुछ भी नहीं बचेगा...इसी सोच को लेकर काम कर रहीं है पद्मश्री जनक पलटा। जिन्होंने सूरज की रोशनी को,पेड़-पौधों को,खेत-खलिहान को ना खुद अपने लिए बल्कि दूसरों के जीवन में रोशनी के लिए चुना है.. इस कार्य में उनके पति और परिवार के लोगों ने पूरा सहयोग दिया.
तरह-तरह के सोलर कूकर...दूर गांव तक जाति सोलर लाइट जो गरीबों के गांव गली को रोशन कर रही है...और हजारों लोगों को सोलर कूकर बनाने का प्रशिक्षण भी दे चुकी हैं...इसके अलावा सोलर कूकर का निर्माण कर लोगों तक पहुंचाने का काम भी लगातार कर रहीं हैं..जनक के पति नार्दन आयरलैंड के थे पर भारत में रहकर यहां के गांव के लिए अहम कार्य किए और इस कार्य के लिए उनके देश की सरकार ने सम्मानित किया...पति की मृत्यु के बाद जनक इस काम को आगे बढ़ा रही हैं.. इस कार्य के लिए जनक को पद्मश्री जैसा सम्मान भी हासिल है आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जनक ने अपने पति के साथ मिलकर इस कार्य को किस हद तक समाज के लिए समर्पित किया होगा कि घर का कोना-कोना सम्मान से भरा पड़ा है.....डॉ जनक एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता है वो इंदौर जिले के सनावदिया गांव में स्थित जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट की संस्थापिका और निर्देशिका हैं जो गैर सरकारी संगठन है..जनक ग्रामीण महिलाओं के बारली विकास संस्थान की पूर्व निदेशक भी हैं..महिला सशक्तिकरण करना उनके जीवन का लक्ष्य है....इस कार्य के लिए डॉ जनक को कई राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी हासिल हो चुका है ...जनक कहतीं हैं कि प्रकृति ने जो कुछ भी हमें दिया है उसे अपने और अपनी पीढ़ी के लिए हमें सम्हालना होगा..प्रकृति के साथ हो रहे खिलवाड़ के लिए हम खुद जिम्मेदार हैं और उसके परिणाम के लिए भी ...तो सम्हलना भी हमे ही होगा..प्रकृति को सहेजने के लिए हम जनक को सलाम करते हैं

ज्योति सिंह 

 

शनिवार, 22 जून 2019

'like' से आपकी पहचान ?

रीति बड़ी खुश थी ,चहक रही थी ..पता है क्यों ? क्योंकि फेसबुक पर, इंस्टा में उसकी पोस्ट को हजारों लाइक मिले थे..उसकी इस हालत पर सौरभ जो उसी का दोस्त है कहने लगा अरे यार मेरे तो इतने दोस्त नहीं है मैं  तो कुछ भी लिखूं या पोस्ट करूं मेरी फोटों में तो इतने लाइक कभी नहीं  आते ना ही कमेंट...रीति थोड़ा गर्वित थी सोशलमीडिया में उसकी पहचान सौरभ से कहीं ज्यादा थी....खैर सौरभ मायूस होकर काम में लग गया। एक दिन अचानक सौरभ का एक्सीडेंट हो गया बाइक से उसने कोई फोन मिलाया बस उसके बाद उसे कुछ याद नहीं...जब होश आया तो देखा हास्पिटल में है...सिर में चोट आने से बेहोश हो गया था ..डॉक्टर कह रहे थे वक्त पर अगर आपके दोस्त हॉस्पिलट ना लाते तो शायद जान ना बचती ..आपके इतने दोस्त देखकर बड़ी खुशी हुई ....सब जान देने पर आमादा दिखे रा- दिन एक कर दिए...रीति भी आई मिलने पर मायूस सी..सौरभ ने पूछा क्या हुआ सब ठीक तो है..बोली मैं तो  खोखली दुनिया पर इतना घमंड कर इतराती रही और तुम इतने धनी होकर भी कभी जाहिर भी नहीं किया। रीति को कुछ याद आगया था जब वो बहुत बीमार थी ..उसके घर के लोग और सौरभ के सिवा कोई नहीं आया था....पर सौरभ के इर्द-गिर्द इतनी दोस्तों की भीड़ देखकर उसे अहसास हो गया था कि ..सोशल मीडिया में कोई कितना ही लाइक और कमेंट लेले..सही मायने में आपके अपने व्यवहार से बने दोस्त ही वक्त पर काम आते हैं फेसबुक तो केवल ही फेस ही बन कर रह जाता है ..दिल की किताब सच्चे रिश्तों के बिना अधूरी ही रह जाती है ।तो कोशिश कीजिए अपने आस-पास के लोगों से लाइक लीजिए ..वरना मुसीबत में फेसबुक ओपन करने का वक्त भी नहीं  मिलेगा और आप तन्हा ही रह जाएंगे...तो अगर किसी को फेसबुक पर लाइक ना मिले तो ये  ना समझे की उसका कोई वजूद नहीं.......ज्योति सिंह
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शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018

आंसू हैं ताकत

 आंसू तेरे नाम.....

तुम कहते हो आंसू का बहना अच्छा होता है..आंसू से मन को ताकत मिलती है...आंसू अगर ना बहें तुम्हारे तो तुम विक्षिप्त हो जाओगे..कितनी विडम्बना है ना ये जिसके लिए आंसू बहते हैं वो ही कहते हैं बहने दो इसे बह जाने दो...वो प्रेम ही क्या जो आंसू के रूप में आखों को सजल ना करे...सुनने में तो बात बड़ी अजीब लगी पर यथार्थ में महसूस किया तो सच मानिए बड़ी खुशी हुई कि आप आत्मा से इतने मासूम हैं कि वो किसी के प्रेम मे विलग होने पर विछोह में रोते हैं..किसी के मिलने पर भी खुशी से आंखे नम होती हैं...यही तो सहजता है जो आज किसी-किसी में ही देखने को मिलती है..और अगर खुद में मिले यकीन मानिए खुशनसीब हैं कि आप सही मायने में इंसान है...जीवन के छोटे-बड़े अनुभव लेते जीवन का एक लंबा वक्त हमने जी लिया...कभी वर्तमान में तो कभी स्मृतियों में...ये भी तुमने ही मुझे समझाया कि हम अपना ज्यादातर जीवन स्मृतियों में जीते हैं तभी शायद अलग होकर भी हम खुश रह पाते हैं,जी पाते हैं..स्मृतियां भी तो कभी वर्तमान थी जिसमे अगर आपने अपना सौ फीसद जिया है तो वो सुखद और संतोषप्रद ही होती है..कोई अफसोस नहीं होता और जब कभी आप खुद के साथ होते हैं तो वही पल आपकी ताकत बन जाते हैं....



मंगलवार, 30 जनवरी 2018

राजिम कुंभ-कल्प 2018

मेरी राजिम यात्रा
राजिम की यात्रा मैने कई बार की और इसकी स्मृतियां मेरे मानस पटल पर सदा के लिए अंकित है..स्कूल कॉलेज में पिकनिक के लिए गए तो राजिम की रौनक कुछ और थी...नौकरी करते वक्त अपने साथियों के साथ पिकनिक में नदियों की सुंदरता ने प्रेम से मन को मोहा..परिवार के साथ पूर्णिमा में राजिम भक्ति के रंग में रंग गया..सालों बाद कल जब राजिम कुंभ पर कार्यक्रम करने के लिए निकली तो राजिम में आस्था के साथ मनोरंजन के अलावा धर्म का राजनीतिकरण दिखा,लोगों की सुविधा के नाम पर भ्रष्टाचार की कलई खोलती परतें दिखीं..नदियों को बचाने के प्रयास के नाम पर नदियों को खत्म करने की बानगी दिखी, ये तो मेरे अपने अनुभव हैं जो साल दर साल बदलते गए...पर राजिम अपने आप में मेरे लिए सदा खास रहा प्रेममय रहा....पढ़ने वालों के लिए भी राजिम को जानना जरूरी है..महानदी,पैरी और सोंढूर नदी के संगम पर बसा है छत्तीसगढ़ का राजिम। पवित्र नदियों के संगम के कारण राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग भी कहा जाता है। यहां हर साल माघ पूर्णिमा से लेकर शिवरात्रि तक विशाल मेला लगता है। संगम के मध्य में कुलेश्वर महादेव का मंदिर स्थित है । कहा जाता है कि वनवास काल में श्रीराम ने अपने कुलदेवता महादेव जी की पूजा की थी। इस क्षेत्र को कमलक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है..मान्यता है कि भगवान विष्णु ने धरती पर कमल गिराया और कहा कि जहां ये गिरे वहां मेरा मंदिर का निर्माण कराया जाए..और पंखुड़ियों पर शिव के मंदिर स्थापित किए गए इसलिए राजिम से ही पंचकोशी यात्रा भी की जाती है.चकोशी यात्रा में श्रद्धालु पटेश्वर, फिंगेश्वर, ब्रम्हनेश्वर, कोपेश्वर तथा चम्पेश्वर नाथ के पैदल भ्रमण कर दर्शन करते है तथा धुनी रमाते है, १०१ कि॰मी॰ की होती है ये यात्रा। राजिम कुम्भ में विभिन्न जगहों से हजारो साधू-संतो का आगमन होता है, प्रतिवर्ष हजारो की संख्या में नागा साधू, संत आते है, और शाही स्नान तथा संत समागम में भाग लेते है, महाकुम्भ में विभिन्न राज्यों से लाखों की संख्या में लोग आते है,और भगवान श्री राजीव लोचन, तथा श्री कुलेश्वर नाथ महादेव जी के दर्शन करते है, और अपना जीवन धन्य मानते है



रविवार, 28 जनवरी 2018

छत्तीसगढ़ का बीजापुर


लालगढ़ में महिला कमांडो
बहुत दिनों के बाद आज फिर लेखनी की दुनिया में जाने को मन मचल उठा..आज एक बार फिर ब्लॉग के जरिए खुद से और आप सभी से बात करने का मन किया..कितने भी दोस्त हों,कितने भी आपके अपने हों फिर भी आप जितनी बातें अपने आप से करते हैं उतनी शायद किसी से नहीं..चलिए कुछ ऐसा ही वाकया आपसे बांटूं ..एक प्रोग्राम के लिए मुझे छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिला बीजापुर जाने का मौका मिला..नक्सलवाद से आज कोई अनभिज्ञ नहीं है...फिर भी आज हमारी बात इससे इतर है..क्योंकि मुझे यहां मिलना था उन महिला कमांडो से जो इन इलाकों में पोस्टेड हैं...इनकी खूबियां तो मैने आगे लिखी है..पर वो बात जो नहीं लिखी वो ही यहां लिख रही हूं..मॉल,फिल्म और ब्रैंड की दुनिया से दूर ये लड़कियां अपने परिवार के जीवन यापन के लिए इतने चुनौति भरे रास्तों पर चल रहीं हैं जिन्हें देखकर लगता है..कोई आकर देखे तो कैसे हालात हैं सच आपको भी जीने का मकसद जरुर मिलेगा..चलिए अब इनकी खूबियां बताऊं..
लालगढ़ में महिलाओं की धमक, आतंक के खौफ को मात...नक्सल इलाकों में विकास की कमान सम्हालती ...ये हैं बीजापुर की महिला कमांडो...जिन्होंने ली है इन हालातों से निपटने की खास ट्रेनिग और ट्रेनिग पूरी कर ये उतर चुकी हैं जमीनी जंग के लिए...नदी पार करना हो ..जंगली जानवरों से निपटना हो या फिर विकास के कार्य की जिम्मेदारी हो..हर चुनौती के लिए सजग चौकस और मुस्तैद...इन महिला कमांडो को विस्फोटक, IED, बारूदी सुरंग, आरओपी, एमसीपी, कांबिंग गश्त, एरिया डॉमिनेशन, सिविक एक्शन, एंबुश, मैप रीडिंग, GPS से लेकर बलवा तक से निपटने में महारत हासिल है.महिला कमांडो के फील्ड पर आने से नक्सली चुनौतियों को निपटने में भी मदद मिल रही है..अपनी इन्ही खूबियों और समर्पण से ये आज दूसरी महिलाओं के लिए प्रेरणा बनकर उभर रही हैं.छ
त्तीसगढ़ की इन महिला कमांडो को हम सलाम करते हैं....ज्योति सिंह

स्वयंसिद्धा सोनल मिश्रा


 लड़कियों के लिए मिसाल


माता-पिता जब बेटी के जन्म को अपने जीवन का पुण्यफल समझें तो... सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं उस लड़की की काबिलियत का.. और ये कहना है सोनल मिश्रा की मां का...स्वभाव से सरल.. इरादे से बुलंद... चुनौतीपूर्ण पुलिस का करियर ये पहचान है सोनल मिश्रा की... आईपीएस सोनल मिश्रा वर्तमान में प्रशासन छत्तीसगढ़ पुलिस में डीआईजी हैं... मां की प्रेरणा, अच्छी परवरिश .. ईमानदार कोशिश और कुछ कर गुजरने के जज्बे ने सोनल को इस मुकाम तक पहुंचा दिया है... 15 फरवरी 1974 को जन्मी सोनल 2000 में आईपीएस अधिकारी बनीं..शुरुआती पढ़ाई रायपुर से हुई उसके बाद अलग-अलग जगहों पर उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की.. इलेक्ट्रॉनिक्स से इंजीनियरिंग करने के बाद सोनल ने आईआईटी कानपुर से एम टेक किया और 1999 में IES में सेलेक्ट हो गईं...और रेलवे ज्वाइन किया .. पर सोनल लोगों के लिए कुछ करना चाहती थीं.. तो उन्होंने फिर से UPSC की परीक्षा दी.. और 33वां रैंक हासिल कर ..बन गईं आईपीएस अधिकारी...10 महीने की कड़ी ट्रेनिंग के बाद उनकी पहली पोस्टिंग एएसपी के तौर पर तमिलनाडु के त्रिचि जिले में हुई... पुलिस के रोमांचक और चुनौतीपूर्ण करियर के 15 सालों के बाद आज सोनल रायपुर में डीआईजी के तौर पर अपनी सेवाएं दे रही हैं...पुलिस को सोनल ऐसा क्षेत्र मानती हैं.. जिसके जरिए वो लोगों की रक्षा और न्याय के लिए लड़ सकती हैं... बचपन से ही पढ़ाई में तेज सोनल को महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए लिखना भी बेहद पसंद है.. इसके अलावा सोनल ने लक्षद्वीप में स्कूबा डायविंग की है.. तो ऑस्ट्रेलिया में स्काई डायविंग... हिमालय में ट्रैकिंग का अनुभव भी सोनल के साथ है.. वे दो बच्चों की मां हैं.. और सफल दांपत्य जीवन के साथ अपने चुनौतीपूर्ण करियर की जिम्मेदारी भी निभा रही हैं....

रविवार, 9 फ़रवरी 2014

धुंआं -धुंआ जिंदगी

फिल्मों और धारावाहिक के दौरान धूम्रपान और शराब के सीन आने पर लिखा होता है ...धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है इससे कैंसर हो सकता है । शराब, सिगरेट और गुटखा के पैकेट पर भी चेतावनी लिखी होती है। केंद्र और राज्य सरकार भी इसकी पांबदी और इससे बचने के लिए हर तरह के प्रचार-प्रसार, विज्ञापन पर लाखों खर्च कर रही है। ......पर ये तो वही कहावत हुई शायद आपने भी सुनी हो....चोर से कहना चोरी कर..और साहूकार से कहना जागते रहे.....पहली बात.... लोग खुद इसके सदियों से आदि हो चुके हैं वो इसके नशे से बचना नहीं चाहते या बच नहीं सकते....दूसरी बात बिक्री से होने वाला फायदा आर्थिक स्तर पर बड़ी भूमिका अदा करता है.....तो फिर रुके कैसे...सीधी सी बात है इसका उत्पादन बंद कर दें....ना उत्पादन होगा ना बिक्री होगी..ना बीमारी होगी...या फिर लोग इसको त्याग दें....ना लोग खाएंगे ...ना बिक्री होगी ना उत्पादन होगा....पर ये दोनो ही बातें नहीं होंगी.....हम अपनी मेहनत की कमाई से नशे की चीजें खरीदेंगे..खाएंगे और फिर बीमार होकर डॉक्टर को फीस देंगे और दवाई के लिए मोटी रकम भी खर्च करेंगे और तकलीफ भी उठाएंगे...कितना बेबस और कमजोर होता है इंसान ....कभी मौका मिले तो देखिएगा शराब की दुकानों पर कितनी शिद्दत से ध्यान लगाए बोतल का इंतजार करते हैं। सिगरेट के लहराते धुएं में कितनी तल्लीनता से अपने गमों को उड़ाते हैं बिचारे...और गुटखा मुंह में भरकर शायद बुरा बोलने से बचने की कोशिश करते हैं....पूछो तो कहते है अरे पियो तो जानो ....कितना सुकून है इसमें...पर मुझे हमेशा से यही बात सालती है कि कोई भी नशा क्या जीवन के नशे से बड़ा हो सकता है...या फिर कोई कैसे जानबूझ कर कोई ऐसी चीज खा पी सकता है जो शरीर में जाकर नुकसान पहुंचाता है....प्रकृति में इतनी अच्छी और स्वादिष्ट चीजें है जो एक जीवन में हम पूरी तरह खा भी नहीं पाते फिर इसकी जरूरत क्यों पड़ती है....थोड़ा सा सोचिए...जिंदगी बेहद कीमती है इसकी अहमियत जाननी हो तो एक बार अस्पताल जाकर जरूर देखें शरीर में बीमारी हो तो कितनी तकलीफ मिलती है खुद को भी और अपने अपनों को भी तो फिर क्यों ये राह चुने जिसका अंत बुरा है.....

मंगलवार, 26 जून 2012

दिल्ली की दुनिया

दिल्ली का सफर तो कई बार किया। कभी कहीं आते-जाते दिल्ली को पार करती ट्रेन से दिल्ली को बड़ी कौतूहल से देखा भी। हर बार एक आश्चर्य और बड़ेपन के अहसास से मन भर जाता था। दिल्ली में रहने वाले लोग छोटे शहरों के लोगों के लिए किसी दूसरी दुनिया में रहने वाले जैसे होते हैं। भारत की राजधानी दिल्ली जिसका सदियों का गौरवशाली इतिहास है,तो तेजी से बढ़ते मैट्रो कल्चर की हर आधुनिक बातों से लबरेज है। दिल्ली का आकर्षण मुंबई, कोलकाता और चेन्नई से हट के है। बुद्धिजीवी वर्ग, पढ़ाई का माहौल, कला की बानगी तो राजनीति का गढ़ दिल्ली सभी के लिए आकाश के सितारे जैसा है जिसे शायद हर कोई पाना चाहता है।आगे बढ़ने की चाह जिसमे हो वो एक बार जरूर दिल्ली की गति के साथ कदम ताल जरूर मिलाना चाहेगा। बस यही चाह मौका मिलते ही दिल्ली के लिए मेरा भी मन में मचल उठा। मन में आत्मविश्वास लिए पहुंच गई दिल्ली। दिल्ली को अपनाने की जद्दोजहद में दिल्ली को करीब से देखने का मौका मिला। साफ-सुथरी चमचमाती सड़के, सड़कों के ऊपर दौड़ती मेट्रो,रंग-बिरंगी बसें और ऐतिहासिक ईमारतों की गरिमा आपको खास होने का अहसास कराती हैं। यहां लोगों के पास किसी के लिए कोई वक्त नहीं, मेल जोल बढ़ाने का कोई रिवाज नहीं, काम निकालने के अलावा दूसरा कोई मकसद नहीं किसी से जुड़ने का। हर कोई जैसे दूसरी जगह से आने वाले लोगों को कमतरी का अहसास कराने में जुटा है। किसी पे आपने यकीन करने की गलती की तो आपके साथ क्या होगा आप खुद नहीं जानते। ऐसी भूल-भुलैया दिल्ली में अगर आपमे जज्बा नहीं, जूझने की हिम्मत नहीं तो कब आप खो जाएंगे कोई नहीं  जानता। दिल्ली के बाहर से यहां आकर पढ़ने वाले, काम करने वाले लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है। खासकर युवा वर्ग इसे करियर के लिहाज से ज्यादा पसंद करता है। उच्च शिक्षा हो, कोचिंग हो या नौकरी की चाह में युवा खिंचे चले आते हैं। तो यहां हर बात को प्रोफेशनल का जामा पहना कर लूटने वालों की कमी भी नहीं है। पेइंग गेस्ट का कारोबार शायद आईपीएस बनने से ज्यादा फायदेमंद है। हर घर में खुद के लिए जगह कम हो तो चलेगा पर एक कमरा भी है तो आप उससे बेहद कमा सकते हैं। कुछ भी खाना बना दें उसकी कई गुनी कीमत आप कमा सकते हैं। और हां अगर आप संवेदना, सादगी, अपनापन,ईमानदारी जैसी खूबियां रखते हैं तो इसे आप छुपा लें वरना आउटडेटेड कहलाने का खतरा भी यहां है। यहां तो भई जो दिखता है वो बिकता है की परंपरा है अगर आपने बाहरी सजावट अच्छी की है,अंग्रेजी के बोल आपके होठों पर सजे हैं, सामने वाले को बेवकूफ बनाने की कला जानते हैं तभी आप दिल्ली की तरफ उम्मीद से देखें वरना ये दिल्ली आपका दिल निकाल कर आपको बेदिल और बेदखल करने के लिए तैयार है। सोच समझ कर चलें दिल्ली की राह.. ये राह आसान नहीं...गालिब ने शेर मोहब्बत की जगह दिल्ली पर लिखा होता तो शायद सही होता......ये दिल्ली नहीं आसां बस इतना समझ लीजे,इक आग का दरिया है और डूब के जाना है....