फिल्मों और धारावाहिक के दौरान धूम्रपान और शराब के
सीन आने पर लिखा होता है ...धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है इससे कैंसर हो
सकता है । शराब, सिगरेट और गुटखा के पैकेट पर भी चेतावनी लिखी होती है। केंद्र और
राज्य सरकार भी इसकी पांबदी और इससे बचने के लिए हर तरह के प्रचार-प्रसार,
विज्ञापन पर लाखों खर्च कर रही है। ......पर ये तो वही कहावत हुई शायद आपने भी
सुनी हो....चोर से कहना चोरी कर..और साहूकार से कहना जागते रहे.....पहली बात....
लोग खुद इसके सदियों से आदि हो चुके हैं वो इसके नशे से बचना नहीं चाहते या बच
नहीं सकते....दूसरी बात बिक्री से होने वाला फायदा आर्थिक स्तर पर बड़ी भूमिका अदा
करता है.....तो फिर रुके कैसे...सीधी सी बात है इसका उत्पादन बंद कर दें....ना
उत्पादन होगा ना बिक्री होगी..ना बीमारी होगी...या फिर लोग इसको त्याग दें....ना
लोग खाएंगे ...ना बिक्री होगी ना उत्पादन होगा....पर ये दोनो ही बातें नहीं
होंगी.....हम अपनी मेहनत की कमाई से नशे की चीजें खरीदेंगे..खाएंगे और फिर बीमार
होकर डॉक्टर को फीस देंगे और दवाई के लिए मोटी रकम भी खर्च करेंगे और तकलीफ भी उठाएंगे...कितना
बेबस और कमजोर होता है इंसान ....कभी मौका मिले तो देखिएगा शराब की दुकानों पर
कितनी शिद्दत से ध्यान लगाए बोतल का इंतजार करते हैं। सिगरेट के लहराते धुएं में
कितनी तल्लीनता से अपने गमों को उड़ाते हैं बिचारे...और गुटखा मुंह में भरकर शायद
बुरा बोलने से बचने की कोशिश करते हैं....पूछो तो कहते है अरे पियो तो जानो
....कितना सुकून है इसमें...पर मुझे हमेशा से यही बात सालती है कि कोई भी नशा क्या
जीवन के नशे से बड़ा हो सकता है...या फिर कोई कैसे जानबूझ कर कोई ऐसी चीज खा पी
सकता है जो शरीर में जाकर नुकसान पहुंचाता है....प्रकृति में इतनी अच्छी और
स्वादिष्ट चीजें है जो एक जीवन में हम पूरी तरह खा भी नहीं पाते फिर इसकी जरूरत क्यों
पड़ती है....थोड़ा सा सोचिए...जिंदगी बेहद कीमती है इसकी अहमियत जाननी हो तो एक
बार अस्पताल जाकर जरूर देखें शरीर में बीमारी हो तो कितनी तकलीफ मिलती है खुद को
भी और अपने अपनों को भी तो फिर क्यों ये राह चुने जिसका अंत बुरा है.....